मातृ दिवस के अवसर पर मुनव्वर राना साहिब की किताब “माँ” की समीक्षा लिखना चाह रही थी पर कारणवश यह सम्भव न हो पाया। ईद के गुज़र जाने पर सिंवई की देग चढ़ााऊं या नहीं इस उलझन में उलझी थी कि मन ने कहा —- माँ की ममता का मुल्य चुकाना तो जन्म–जन्मान्तर तक कठिन है, फिर मई महिने का मात्र एक दिन ममत्व को मान देने के लिए मुक्कर्र रहे यह तो मुनासिब नहीं है।
मन के इस मार्ग–दर्शन से मुतासिर होकर मैं, जिनाब मुनव्वर राना के तसुव्वर से तामीर हुई “माँ” से आपकी एक मुलाकात करवाने को, हाज़िर हूँ। मेरे विचार में यह किताब रूसी लेखक मैक्सिम गोर्की( Maxim Gorky) द्वारा रचित “मदर” (Mother) के सार का काव्यात्मक रूप और जमाने की हर माँ का मूक प्रतिरूप है। खूबसूरत ल़फ्ज़ों का लिबास पहने इस “माँ” में एहसास की गरमी और अपनत्व की नरमी है। कभी दुलारती है, कभी फटकारती है, इक पल मुस्काती है तो दूजे पल आँसू बहाती है। इसका पोर–पोर मोहब्बत के ज़ज़बे से लबरेज़ है और लब्बो–लुआब यह कि ममता के हर पहलू को समेटने की चाहत रखने वालों के लिए यह एक उम्दा दस्तावेज़ है।
इस किताब के प्रकाशक— वाली आसी एकेडमी,8-प्रथम तल, एफ. आई. ढींगरा अपार्टमेंटस,लाल कुआँ, लखनऊ-226001 (उ.प्र.) है। मुद्रक का पता है— नेचर आफसेट प्रिंटर्स, दिल्ली। फोन-22015607. कवर टाइटल रिकोन एडवर्टाइज़र्स ग्रुप, लखनऊ की देन है। किताब का मुल्य केवल 25/- रुपये है और यह राशि “माँ फाउण्डेशन” के प्रति सहयोग की तरह ली जा रही है जो ज़ररूतमन्दों की इमदाद के लिए खर्च की जाएगी।
इस किताब के शुरूवात में अपनी बात कहते हुए राना साहिब कहते है– “मैं दुनिया के सबसे मुकद्दस और अज़ीम रिश्ते का प्रचार सिर्फ इसलिए करता हूँ कि अगर मेरे शेर पढ़ कर कोई भी बेटा माँ की खिदमत और ख्याल करने लगे, रिश्तों का एहतराम करने लगे तो शायद इसके बदले में मेरे कुछ गुनाहों का बोझ हल्का हो जाए। ये किताब भी आपकी ख़िदमत तक सिर्फ इसलिए पहुँचाना चाहता हूँ कि आप मेरी इस छोटी सी कोशिश के गवाह बन सकें और मुझे भी अपनी दुआओं में शामिल करते रहें।
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाए
दीए से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है।”
कुल बहत्तर पन्नों वाली यह किताब हर उस बेटे के नाम समर्पित है जिसे माँ याद है। य़ूं तो इसका हर पन्ना एक सरमाया है और उस पर छपा हर श़ेर एक बेशकीमती नगीना पर कुछ श़ेर जो मुझे बेहद पंसद आए वो आपकी नज़र कर देती हूँ क्योंकि आखिर मैं भी तो एक माँ हूँ और राना साहिब के अनुसार—-
सुख देती हुई माओं को गिनती नहीं आती
पीपल की घनी छायों को गिनती नहीं आती।
लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो कभी खफ़ा नहीं होती।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुप्पट्टा अपना।
अभी ज़िंदा है माँ मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है।
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।
ऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
माँ ने आँखें खोल दी घर में उजाला हो गया।
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ।
मुनव्वर‘ माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में गज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है।
धन्यवाद. मुझे नहीं पता था कि राना साहब की कोई किताब मां पर भी है. मेरी अज्ञानता.
यह किताब मंगवानी ही पड़ेगी.
अरे वाह यह किताब तो मंगानी पड़ेगी . मदद के लिए शुक्रिया .
ऊपर दिए गए ई-मेल पते पर चिट्ठी भेजने पर डाकपेटी उपलब्ध नहीं की त्रुटि आती है.
सही पता क्या है?
वाह, पुनः इतनी बेहतरीन समीक्षा के साथ आपका स्वागत. सभी पढ़े और सुने हुये राना साहब के शेरों को हर बार और अनेकों बार पढ़ने को जी चाहता है.
बहुत बेहतरीन पेशकश. उम्मीद है अब सब ठीकठाक होगा और आप नियमित लिख सकेंगी. 🙂
रवि जी, पुस्तक पर यही पता दिया है पर फिर भी मै उनसे जल्दी ही बात करके सही पता जानने की कोशिश करती हूँ।
वाह! क्या समीक्षा की है।यह तो सीधे दिल मे उतर गया-
“मैंने रोते हुए पोछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुप्पट्टा अपना।”
بیہترین۔ مُنوّر رانا ساہب کی اِس کِتاب پر جو آپنے لیکھ پیش کِیا ہے۔ داد کے قابِل ہے رچنا جی۔ مُبارک ہو
अच्छे काम की बधाई.
शुक्रिया रत्ना जी, जानकारी देने के लिये.
बहुत अच्छे शेर लिखे हैं मुनव्वर राना जी ने मां पर! आपका बहुत-बहुत शुक्रिया इनको हमें पढ़वाने का!
बहुत अच्छे । आनंद आ गया माँ से जुड़े इन प्यारे अशआरों को पढ़ के । मुन्नवर राणा की इस बेशकीमती रचना को हम तक पहुँचाने का शुक्रिया !
रत्ना जी, मुनव्वर राणा साहब के यह सभी शेर बहुत खूबसूरत और भाव-प्रधान लगे। उनकी इस कृति से परिचित कराने का धन्यवाद। राणा साहब की ऐसे कृति व ममत्व के प्रति सम्मान प्रस्तुत करने के लिये किसी दिवस अथवा अवसर विशेष पर निर्भरता ही नहीँ, सो आप कोई रंज न करें, इसके मातृ दिवस पर न प्रकाशित हो पाने का।
नीरज जी, मैं उर्दू तो बहुत नहीं जानता, कभी सीखी थी पर उत्सुकतावश
आपकी टिप्पणी पढ़ने का प्रयास किया। इसका तर्जुमा शायद इस प्रकार से है (यदि कोई त्रुटि हो तो, कृपया क्षमा करें और बता भी दें, कई वर्षों बाद उर्दू पढ़ने का प्रयास किया है। इसे मैं लगभग 2-3 मिनट में पढ़ पाया था)
बेहतरीन – मुनव्वर राना साहब की इस किताब पर जो आपने लेख पेश किया है – दाद के क़ाबिल है – रचना जी मुबारक
(यदि यह तर्जुमा ठीक न हो तो इसे जानकार पाठक ठीक भी कर दें तो बेहतर)
रत्ना जी कुछ बरस पहले इलाहाबाद के एक मित्र ने मुझे इसमें से कुछ शेर लिख भेजे थे ताकि मैं मां पर छायागीत प्रस्तुत करूं विविध भारती से । मैंने इन शेरों पर छायागीत किया भी था पर आज पता चला कि मुनव्वर राणा ने पूरी की पूरी पुस्तक लिखी है मां पर । अभी इंदौर गया था दो दिनों के लिए तो पता चला कि शहर में मुनव्वर राणा ने धूम मचा रखी है अपने कार्यक्रमों के ज़रिए । पुस्तक के बारे में बताने का हृदय से आभार
राना साहिब की किताब माँ प्रकाशक के पते पर लिख कर मंगवाई जा सकती है। ई-मेल का उपयोग कम करते है इसकारण मैंने ई-मेल एडरैस पोस्ट से हटा दिया है।
शुक्रिया इस पूरी जानकारी के लिए! मैनें सबसे पहले “मां” के बारे में कुछ शेर आपके ही चिट्ठे पर पढ़े थे, फ़िर अविनाश भाई के मोहल्ले में राणा साहब के बारे में और भी जानकारी मिली, तब लगा कि इनकी किताब “मां” पढ़नी ही चाहिए, तब फ़टाफ़ट अविनाश भाई को ई-मेल किया और प्रकाशक का पता उनसे लेकर लखनऊ में अपने मित्र से संपर्क किया, आशा है अब किताब आती ही होगी।
फ़िर से एक बार आपका शुक्रिया
mai munawwar sahab ki aane wali kitabo ke bare me janana chata hnu, aur ve kaha se mil sakengi “plz”
मुनव्वर साहब वाक़ई बड़े शायर है !! इतने बड़े कि ना सिर्फ़ अपने बुज़ुर्गों से सीखते हैं बल्कि अपने छोटों से भी प्रेरणा लेने में गुरेज़ नहीं करते। मुझे अच्छी तरह याद है, मेरे शहर ग्वालियर में एक नौजवान शायर ने मुनव्वर साहब की मौजूदगी में मां पर अपनी एक बहुत संजीदा ग़ज़ल पढ़ी थी, जिसका एक शे’र यूं था-
”बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़्सीम हुईं, तब-
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई- अम्मा.”
कुछ माह बाद क्या देखता हूं कि यही शे’र मुनव्वर साहब की इसी ”मां” किताब में कुछ इस तरह छपा हुआ है-
”किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई-
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में मां आई.”
मित्रों, मुनव्वर साहब वाक़ई ”बड़े” शायर है !!
लीजिए, क़िस्मत से मुझे वो ग़ज़ल भी मिल गई, जो ‘अक्षरों की दुनिया’ या कहूं कि हिंदी साहित्य में युवा कवि आलोक श्रीवास्तव की श्रेष्ठतम रचना के रूप में ख्यात है-
चिंतन, दर्शन, जीवन, सर्जन, रूह, नज़र पर छाई- अम्मा,
सारे घर का शोर-शराबा, सूनापन तन्हाई अम्मा.
सारे रिश्ते- जेठ-दुपहरी, गर्म-हवा, आतिश, अंगारे,
झरना, दरिया झील, समंदर, भीनी-सी पुरवाई- अम्मा.
उसने ख़ुदको खोकर मुझमें एक नया आकार लिया है,
धरती, अंबर, आग, हवा, जल जैसी ही सच्चाई- अम्मा.
घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे,
चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई- अम्मा.
बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़्सीम हुईं, तब-
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई- अम्मा.
बहुत-बढ़िया
इसे पड़ कर पल भर के लिए तो ऐसा लगा जैसे कि
मैं मां कि गोद में आराम कर रहा हूँ, बचपन की
मधुर स्मृति ताजा हो गई,
ईशवर कि तरह मां पर भी जितना लिखा जाय कम होगा ……..
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया ……….
– नितिन कुमार शर्मा
जुमेराती, कलीमंदिर के पास
होशंगाबाद, [ म.प्र. ] ४६१००१- पिन
Great sir great
your feelings is realy great
…….Nitin
its really
great
ghar se bahut door hoon
to shayad kuch jayada hi aati hai maa ki yaad,
in sheron ko padha to aakhoon mein aasoon aa gaye aaj.
bahut shukriya aap ka
Munnawar Rana & Dr. Kumarji Aapka kya kahna maine jab se aapki kavita suni he isse achchha pahle kabhi nahi suna really. Iam your fame both of u my dear sir.
i like munawar sir shair
bahut der se “maa ” par kucch acchi kavita dhoond raha tha.par maja nahi aa raha tha.rana g kaise kavi hain nahin pata lekin unki “maa” waali kavita ne mujhe unka fan bana diyaa.ekdum shadharad shabdon mein bahut satik aur sach likh diyaa hai
waaaaaaaaaaaaah
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Rana ji ka great fan hun jab se unko wah wah per maa ki shayri kahte hue suna unke jaisa shyer mane to nahi suna kya baat hai maa ke aare main aur koi shayer ya kavi ho to please bataye?
very touching…..
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ।
लाजवाब शे’र
I M A GREAT FEN OF MUNAWWAR SB,LEKIN MAZA AA GAYA.
great… really great
”ye aisa karz hai jo main ada kar nahin sakta,
main jab tak ghar na lotoon
maan meri sazde mein rahti hai.”
sach mein maa ke bare mein jo kaha jae kam lagta hai.. fir bhi munavvar rana ki lines padh ke laga ki shayad hi kuch choota ho
thanks.. thank u very much
munavar rana ji apne apne aur desh ke karoro maao ke dhoodh ke karz ko apeni is rachna se utarne ka ek jayej prayash kiya hai apko sadar naman. thanks.
Dear ratna ji I want to send some of my fathers ghazals which are published in a book TEZ HAWA by Sri Prabhat Shankar . Through you it can be exposed to many people . Pl let me know the procedure .
Regards
Anurag Srivastava
03211444737
Mumbai
mujhe bahut sukhad ahsas hua…..
शुक्रिया,
इन बेहतरीन जांकारियों के लिये.
मेरे जैसे मुन्नवर राणा सहब के चाहने वालों के लिये ये किसी नियामत से कम नहीं है.
चन्द्र शेखर भगत
बेहतरीन प्रयास |
मुनव्वर राना साहब को हार्दिक बधाई |
मेरी दुआ है वो हजारों साल जियें और बेहेतरीन शेर कहें |
मुनव्वर राना साहब की इस किताब पर जो आपने लेख पेश किया है,
दाद के क़ाबिल है – रचना जी मुबारक ………………….
too good
इतने महान कवि माननीय मनव्वर राणा साहब के चरणों में मै नतमस्तक हूँ जिन्होंने इस कविता के माध्यम से माँ के स्वरूप का इतना सुन्दर रूप जो अमिट है दरसाया ।
BHAI munawwar dil ko hola kar rakh diya aapne
meri duniya hai maa teri anchal main mere lye maa hi subkuch hai maa ke siva kuch bhi nahi kuch bhi nahier
वो कहतें हैं न की “हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोटी है …बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा ” जी जनाब आली मक़ाम मुनव्वर साहेब जिस तरह की शायरी करतें है उनको सुनने के बाद एक तरह का ये अहसास होता है की बाहर सूरज आग उगल रहा होता है और ठीक उकी वक़्त हलकी हलकी बारिश होरही ही पूरा बदन लम्हा लमहा सर्द हो जाता है ठीक इसतरह आप या हम महसूस करेंगे की उनकी शायरी अज़ीमतरीन और पाकीज़ा है जैसी बारिश / मैं उनको पहली बार १९९३ में सुना था तब से आज तक जब भी मौक़ा मिला ,,ज़रूर सुनता हूँ इससे मेरी रूह का गुस्ल हो जाता है और मां के लिए एक अज़ीम जज़्बा जाग उठता है ..आप बधाई के पात्र है …बहुत बहुत शुक्रिया
मुनव्वर भाई , शायद ही उर्दू शायरी में ऐसा शायर होगा जिसने अपनी महबूबा अपनी मां को माना हो और इन्ही पर शेर कहे हों ..आप जिंदाबाद हैं ..हम सबकी नेक दुआएं हैं आपके साथ ..अल्लाह आपकी और आपके वालिदः की लम्बी उम्र दे ..आमीन
माँ का पूरा कलेक्शन अब ऑनलाइन अवेलेबल है , आप यहाँ से पढ़ सकते हैं :
http://munawwarrana.in
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